Sadhana Shahi

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वो लौट आया (कहानी )प्रतियोगिता हेतु-05-May-2024

वो लौट आया है (कहानी) प्रतियोगिता हेतु

रमन एक बहुत ही होशियार, धीर ,वीर, गंभीर, बुद्धिमान और मेधावी बालक था। उसके माता-पिता बचपन में ही मर चुके थे। अतः ज्ञानदास तथा माधुरी ने ही उसका लालन पालन किया था। ज्ञान दास रमन को मंदिर से उठा कर ले आए थे। पहले- पहल माधुरी रमन का पूरा ख़्याल रखती थी लेकिन जब उसके दो बच्चे हो गए तब वह रमन को उपेक्षित करने लगी। समय आगे बीतता रहा तीनों बच्चे जवान हो गए और तीनों बच्चों की शादी हो गई। अब शादी होने के पश्चात खर्च भी बढ़ गए। माधुरी के दोनों बच्चे बात-बात में रमन को ताना देते यह अनाथ पता नहीं कहांँ से आकर हमारे ऊपर बोझ बन गया है। पिताजी को भी पता नहीं क्या सूझी थी कि इसको उठा कर ले आए। रमन को यह बात अच्छी नहीं लगती, अतः उसने एक दिन पिताजी से बोला पिताजी मैं परदेश जा रहा हूंँ। पढ़ा- लिखा तो हूँ नहीं कोई भी छोटा-मोटा नौकरी धंधा कर लूंँगा।

उसके पिता ने कहा बेटा मेरा इतना लंबा-चौड़ा व्यापार है तुम उसे संँभालो, दूसरे की नौकरी करने क्यों जा रहे हो?

रमन ने अपने भाइयों की करतूत को न बताते हुए उसने कहा, यहांँ पर दोनों भैया हैं तो आपका व्यापार संँभालने के लिए। मैं नौकरी करने के लिए शहर जा रहा हूंँ ऐसा कहकर वह शहर चला गया। उसके पिताजी रमन से बड़े ही नाराज़ हुए। उन्हें लगा उसने अपने पिता की आज्ञा का अवहेलना किया।

जब रमन चला गया तब धीरे-धीरे उनके बेटों की करतूत सामने आने लगी। दोनों बेटे को खुलकर अय्याशी करते, शराब पीते होटल में जाते अलग-अलग लड़कियों के साथ रात बिताते और गुलछर्रे उड़ाते। रमन की पत्नी से माधुरी की दोनों बहुएंँ नौकरानी की तरह दिन-रात काम करातीं और उसे बचा कुछ खाने को दे देतीं लेकिन रमन की पत्नी कभी भी उफ्फ नहीं करती।

देखते-देखते वर्ष भर बीत गया वर्ष भर में माधुरी के दोनों बेटे व्यापार को पूरा डूबने के कगार पर ला दिए। घर मंदी दौर आर्थिक तंगी के दौर से गुज़रने लगा। उधर रमन मेहनत मज़दूरी करके धीरे-धीरे एक कंपनी में मैनेजर के पद पर पहुंँच गया था। अब उसकी अच्छी नौकरी हो गई थी अच्छी तनख्वाह मिलने लगी थी। अतः वह पूरे घर के लिए कपड़े तथा अपने पिताजी के लिए एक सोने की चेन लेकर गांँव के लिए वापस आया।

जैसे ही वह गांँव के बाहर पहुंँचा कुछ लोगों ने देख लिया और रमन के पहुंँचने के पहले ही रमन की समृद्धि की कहानी घर पर पहुंँच गई। जब माधुरी के दोनों बेटों ने सुना कि वह लौट आया है तो पहले तो वह हड़बड़ाए लेकिन जब इसकी समृद्धि की कहानी सुने तब उनके दिल को सुकून आया और दोनों बिचारे सा शक्ल बनाकर घर के बाहर हाते में बैठ गए।

जब रमन घर आया तो माधुरी के दोनों बेटे उसका पैर पड़कर उससे माफ़ी मांँगने लगे। रमन ने कहा नहीं भैया आप लोग मुझसे माफ़ी नहीं मांँगिए। मैं तो एक अनाथ बच्चा हूंँ जिसके मांँ- बाप का कोई ठिकाना नहीं, कि वे किस जाति, धर्म, मज़हब के थे, किस वर्ग के थे, क्या करते थे? आप लोग इस घर के मालिक के बच्चे हैं आप लोग मेरा पैर नहीं पकड़िए।

तब माधुरी के दोनों बेटों ने कहा, नहीं रमन हमसे बहुत बड़ी गलती हो गई । तुम तो हमारे बड़े भाई की तरह हो तुम हमारे साथ यहीं पर रहो। तुम हमें अपनी छत्रछाया में रखो। रमन उन दोनों भाइयों के छल-कपट को पहचान न पाया, वह जो पैसा और चीज़े लेकर आया था सब में बांँट दिया। जब तक उसके पास पैसा था घर में सारे लोग बड़े सुख-, चैन से खाए- पीए। लेकिन पैसा ख़त्म होते ही माधुरी के दोनों बेटे फिर से वही स्थिति शुरू कर दिए। रमन परेशान होकर फिर से शहर को गया अब उसने और मेहनत करना शुरू कर दिया और देखते ही देखते उसे दिन दूना रात चौगुना तरक्की मिलने लगी।

6 महीने पश्चात वह फिर घर आया। घर एकदम बर्बादी के कगार पर आ चुका था। वह आकर अपने पिताजी से बोला पिताजी मैं अपने परिवार को अपने साथ शहर लेकर जाना चाहता हूँ। साथ लेकर जाना चाहता हूंँ। आख़िर आप कब तक पूरे परिवार की ज़िम्मेदारी निभाते रहेंगे? रमन के पिता बड़े खुश हुए और वह दौड़ते हुए अंदर माधुरी के पास जाकर बोले अरे वह आज लौट आया है। माधुरी ने कहा, कौन अरे वह हमारा बड़ा बेटा। माधुरी दौड़ते हुए बाहर आई और आकर रमन से लिपट गई और फफक-फफककर रोने लगी। उसने कहा, बेटा हमें माफ़ कर दो। मैने तुम्हें कभी मांँ का प्यार नहीं दिया। मैंने तुम्हें हमेशा सौतेला बेटा समझा और जो मेरे ख़ुद के बेटे थे उन्होंने कभी मुझे माँ नहीं पैसा देने की मशीन समझा। जैसे ही पैसे ख़त्म हुए वो मेरा अनादर करने लगे यहांँ तक कि मेरे ऊपर हाथ भी उठाने लगे।

मुझे माफ़ कर दो बेटा और तुम अपनी पत्नी को लेकर शहर जाओ, मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है तुम दोनों हमेशा खुश रहो। उस बिचारी ने बहुत कष्ट किया। रमन अपनी मांँ से लिपटकर होते हुए बोला, ऐसा क्यों कह रही हैं मांँ। आप मेरी मांँ हैं मैं सिर्फ़ अपनी पत्नी को नहीं अपने परिवार को लेने आया हूंँ और मेरे परिवार में सिर्फ़ हम पति-पत्नी नहीं बल्कि आप और बाबूजी भी शामिल हैं, शामिल तो दोनों भाई भी थे लेकिन अपनी करतूतों से वो भाई कहलने के लायक नहीं है।

रमन अपने माता-पिता और रुक्मणी को शहर ले जाने की तैयारी करने लगा कर दिन बाद रमन सबको लेकर शहर चला गया और माधुरी के दोनों बेटे बिजनेस को बर्बाद करके वहीं पर मेहनत मज़दूरी करके बड़े ही कष्टपूर्वक अपना जीवन यापन करने लगे।

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें कभी भी सगे और सौतेले का भाव नहीं रखना चाहिए। कभी-कभी हमारे अपने हमारे साथ छल- कपट कर हमें बर्बादी के कगार पर ला देते हैं और जिसे हम सौतेला या पराया समझते हैं वही हमारी ज़िंदगी को केसर बन महक देता है। जैसे रमन ने माधुरी और ज्ञानदास का महकाया।

साधना शाही, वाराणसी

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2 Comments

kashish

09-May-2024 05:17 PM

V nice

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Mohammed urooj khan

07-May-2024 02:13 PM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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